हिंदू धर्म की मूलभूत संकल्पना: एक विश्लेषण
- Alok Kumar
- 2 जुल॰ 2024
- 4 मिनट पठन

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा सदन में यह कहना कि हिंदू हिंसक हैं और हिंसा फैला रहे हैं, अत्यंत शर्मनाक एवं गहरी चिंता का विषय है। हालांकि, विरोध किए जाने पर उन्होंने अपने बयान में सुधार किया और कहा कि वह ऐसा भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए बोल रहे हैं।
हिंदू शब्द की उत्पत्ति:
यह मान्यता है कि पारसियों द्वारा सिंधु नदी के पूर्व में रहने वाले लोगों को सूचित करने के लिए "हिंदू" शब्द का प्रयोग किया गया था। परंतु नवीनतम शोध यह प्रमाणित करते हैं कि हिंदू शब्द का प्रथम उल्लेख विशालक्ष शिव द्वारा लिखित शास्त्र में मिलता है। इसका उल्लेख वृहत संहिता एवं बृहस्पति आगम में भी किया गया है जब इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था। हिंदू शब्द का उल्लेख हमारे शास्त्रों में इस अर्थ में किया गया है कि जो हिंसा की निंदा करता है वह हिंदू है।
धर्म का अर्थ:
उपर्युक्त दोनों संदर्भों से यह स्पष्ट है कि हिंदू शब्द का प्रयोग किसी विशेष धर्म या पंथ या मजहब के लिए नहीं किया गया है, बल्कि लोगों के लिए किया गया है। यह एक ऐसे समूह एवं समुदाय का सूचक है जिसके मूलभूत विचार, चिंतन, व्यवहार, दिनचर्या में उदारता, प्रेम, करुणा, सत्य, अहिंसा जैसे सर्वोच्च प्रकार के गुण विद्यमान हों।
इसलिए भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में "धर्म" शब्द का अभिप्राय किसी पंथ या मजहब के लिए नहीं किया गया है, बल्कि धर्म वह है जो धारण करने योग्य हो। अर्थात सर्वोच्च प्रकार के गुण, विचारों, चरित्र, व आचरण को धारण करना ही धर्म है। इस अर्थ में विश्व के सभी धर्म एक हैं और उनका उद्देश्य भी एक है, क्योंकि इन गुणों को धारण कर ही एक आदर्श व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की रचना की जा सकती है।
यही धर्म का शाब्दिक, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक अर्थ व मीमांसा है। इसके अतिरिक्त धर्म का अर्थ कर्तव्य, न्याय, सत्य, व अहिंसा से भी है क्योंकि धर्म हमें सामाजिक जीवन में रहते हुए सभी प्रकार के कर्तव्यों के निर्वहन की भी प्रेरणा देता है, जिससे पुनः सत्य, न्याय व अहिंसा जैसे गुणों की स्थापना होती है।
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में धर्म पर जितना भी लिखा जाए कम है। परंतु यहां विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में दिए गए उनके भाषण में हिंदू धर्म एवं अन्य संदर्भ में उनके विचारों में विद्यमान मूर्खता, अपरिपक्वता एवं अपने आप को ही सर्वेसर्वा मानने के उनके अहंकार में विद्यमान खतरनाक प्रवृत्तियों का पर्दाफाश करना आवश्यक है।
इस संदर्भ में मेरा पहला प्रश्न यह है कि जिस तेवर व प्रवाह में वे हिंदुओं को हिंसक बोल गए, क्या ऐसा ही वे दूसरे धर्म के लिए कर सकते हैं? और यदि हां, तो देश एवं विदेश में उसकी क्या और कैसी प्रतिक्रिया होती? इसका अंदाजा राहुल गांधी, संपूर्ण विपक्ष और उनका बचाव करने के लिए आए सोशल मीडिया पर विद्यमान लोगों को है?
मेरा स्पष्ट मानना है कि हिंदू धर्म को छोड़कर यदि यही प्रतिक्रिया उन्होंने किसी अन्य धर्म के संदर्भ में की होती, तो आज इतनी शांति न होती। बार-बार हिंदू धर्म को ही निशाना बनाना राहुल गांधी, कांग्रेस और विपक्ष के किस एजेंडे का हिस्सा है? इसे देश के समक्ष स्पष्ट करने की आवश्यकता है। आखिर वे किसे खुश करना चाहते थे? कहीं यह कांग्रेस की पुरानी तुष्टिकरण की राजनीति की निरंतरता तो नहीं? कहीं यह देश को पुनः जाति व धर्म के नाम पर बांटने की साजिश तो नहीं? आखिर हिंदुओं पर नाजायज टिप्पणी की आवश्यकता उन्हें क्यों प्रतीत हुई?
खैर, यदि यह मान भी लिया जाए और उन्होंने बाद में अपने आप को सुधारते हुए यह कहा कि वह ऐसा भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदुओं के लिए बोल रहे हैं, तब भी यक्ष प्रश्न यही है कि हिंदू शब्द का सही अर्थ राहुल गांधी समझते हैं? हिंदू एक जीवन शैली है, जीवन जीने की पद्धति है, जिसमें उदारता, सहिष्णुता, सहयोग, समन्वय एवं सामंजस्यता की प्रवृत्ति है। वह सभी समाज, संस्कृतियों, धर्म के श्रेष्ठ तत्वों को स्वीकार कर उनमें संतुलन स्थापित करने की हमारी क्षमता है। भारत में रह रहे लोगों, चाहे उनकी जाति, धर्म कुछ भी क्यों ना हो, वे इसी जीवन शैली को जीते हैं। इसलिए हिंदू जीवन्त हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी 1995 में हिंदू शब्द की व्याख्या इसी संदर्भ में की है।
अतः आवश्यक यही है कि 10 वर्षों बाद जनता ने कांग्रेस को मान्यता प्राप्त विपक्ष बनने का अवसर दिया है और राहुल गांधी मान्यता प्राप्त विपक्ष के नेता बने हैं। कम से कम अब तो उन्हें परिपक्वता का परिचय देना ही चाहिए और एक जिम्मेदार पद पर बैठकर ऐसे विभाजनकारी बयान देना और फिर उनका और संपूर्ण विपक्ष का बचाव करना बेहद ही आपत्तिजनक एवं खतरनाक है।
मेरे विचार से उन्हें बिना शर्त लोकसभा में देश से माफी मांगना चाहिए। माफी मांगने में आखिर शर्म कैसी? पहले गलती करना और गलती पर अड़े रहना बेशर्मी अवश्य है। माफी मांगना उदारता का गुण है और इससे कम से कम वे यह जरूर सिद्ध कर पाएंगे कि वे असली हिंदू हैं। अंत में यही आह्वान करना चाहूंगा कि गर्व से कहिए कि हम हिंदू हैं।
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